जशपुर । प्लास्टिक वस्तुओं के अधिकतम उपयोग से बांस के कारीगरों से रोजगार छीन लिया है । जिससे बंसोड़ जनजाति के लोगों में बेरोजगारी की संख्या बढ़ रही है। जिले में बंसोड़ जनजाति बहुत ही कम संख्या में पाए जाते है। जिले के मनोरा तहसील के घाघरा और जशपुर तहसील के तुर्री लोदाम, झोलंगा समेत कुछ अन्य जगह में यह जनजाति निवास करती है।फिलहाल, वहीं जिले में बांस की कमी ने इस जनजाति के लिए दोहरी मुसीबत साबित हो रही है। बांस के लिए जनजाति के लोग पड़ोसी राज्य झारखंड पर आश्रित है। अपने पारंपरिक पेशे को बचाए रखने के लिए इस जनजाति के लोग बांस प्राप्त करने के लिए कई किलोमीटर की पदयात्रा कर रहे हैं। वहीं वन विभाग जिले की जलवायु को बांस उत्पादन के लिए अनुपयुक्त बता रहा है। राजीव गांधी बांस मिशन जिले में सफल नहीं हो सकी है। जिससे बंसोड़ जाति को सस्ते दर में बांस उपलब्ध कराने की सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। दरअसल, प्लास्टिक समान का बढ़ता प्रचलन ने बंसोड़ जनजाति के सामने रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न कर दी है। घाघरा निवासी 60 वर्षीय कालू राम ने बताया कि पेटी, थाली, गिलास जैसी वस्तुओं की मांग पूरी तरह से खत्म हो चुकी है। ले देकर सूप,दौली जैसे कुछ एक वस्तुओं को साप्ताहिक बाजार के साथ आसपास के गांवों में बेचकर किसी तरह परिवार का पेट पाल रह हैं। शिक्षा के अभाव में मजदूरी के ही इस जनजाति के सामने दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सनियारो बाई ने बताया कि दिन भर गांव-गांव घूम कर खाक छानने पर 50 से 100 रूपये से अधिक की आमदनी नहीं हो पाती। इस आय में दो समय की रोटी का जुगाड़ करना ही मुश्किल हो जाता है। आर्थिक बदहाली की मार झेल रहे बंसोड़ों परिवार पूरी तरह सरकारी योजना के तहत मिलने वाली सहायता पर आश्रित हो चुके हैं।
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